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नमस्कार, मैं रवश कुमार। केंद्र सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ईपीएफओ से पैसा निकालने को लेकर कई बड़े बदलाव किए हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया में बहस हो रही है। इस बहस में एक पुरानी घटना का जिक्र करना चाहता हूं। फिर इस समय क्या फैसले हुए? सरकार का दावा क्या है? लोगों के सवाल क्या हैं? इस पर भी बात करेंगे। क्या आपको याद है कि 2016-17 के बजट में मोदी सरकार ने ऐलान किया था कि ईपीएफओ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से पैसा निकालने पर टैक्स लगेगा। तो ईपीएफओ के पैसे पर टैक्स लगाने का आईडिया एक बार मोदी सरकार को आ
चुका है। इसी के साथ उस समय दो और बदलाव किए गए थे। रिटायरमेंट से पहले 50% ही पैसा निकाल सकते थे और जो कंपनी का हिस्सा है वो 58 साल की उम्र के बाद निकाला जा सकता था। इस फैसले को 2 महीने के भीतर मोदी सरकार को वापस लेना पड़ा। उस समय भी इसी तरह की दलीलें दी जा रही थी कि हम पेंशन युक्त समाज बनाना चाहते हैं। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली कह रहे थे कि हम नहीं चाहते कि लोग पूरा पैसा निकाल लें इसलिए टैक्स लगा रहे हैं। तब वित्त मंत्री काफी अच्छे से समझा रहे थे। जाहिर है दिल्ली का गोदी मीडिया बहुत अच्छे से समझ जा रहा था और चुप हो जा रहा
था। लेकिन बेंगलुरु की गारमेंट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं को यह गेम समझ आ गया। नए नियम से इतनी नाराज हो गई कि सड़क पर उतर गई और आंदोलन हिंसक हो गया। महिलाओं ने बेंगलुरु स्थित ईपीएफओ के ऑफिस में तोड़फोड़ कर दी। ईपीएफओ के स्टाफ को भागकर बेसमेंट में और छतों पर छिपना पड़ा। इतना गुस्सा था। दिल्ली हैरान थी कि मार्च का फैसला है। आंदोलन अप्रैल के महीने में बेंगलुरु में हो रहा है। वह भी बिना किसी नेतृत्व या संगठन के महिलाएं सड़कों पर उतर आई हैं। क्यों हुआ ऐसा? गारमेंट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं के पास
अक्सर वक्त नहीं होता तो उन्हें यह खबर देर से पता लगी। इंडियन एक्सप्रेस ने जब आंदोलन के कारणों की पड़ताल की तो पाया कि 16 अप्रैल को विजय कर्नाटका अखबार में एक रिपोर्ट छप गई कि अगर अप्रैल खत्म होने से पहले कर्मचारियों ने ईपीएफ के लिए अप्लाई नहीं किया तो 1 मई से नई नीति लागू हो जाएगी और वे सिर्फ 50% पैसा निकाल पाएंगे। कई महिलाएं सोचने लगी कि नौकरी छोड़कर ईपीएफओ का पैसा निकाल लेते हैं। बेटी की शादी करनी है, फीस भी भरनी है। इलाज का खर्चा है। फैक्ट्री के मालिकों को भी चिंता हो गई कि मास स्केल पर पैसा निकालने
के लिए महिला कर्मचारी कहीं छुट्टी ना लेने लग जाए और नौकरियां ना छोड़ दें। जिससे पूरी की पूरी इंडस्ट्री ठप हो सकती थी। तो महिलाओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिया और प्रदर्शन इतना बड़ा हो गया कि दिल्ली में बैठी मोदी सरकार की सांस फूल गई। एक महीने के भीतर यह फैसला वापस लेना पड़ा। सबसे पहले आज अगर ईपीएफओ से पैसा निकालने पर टैक्स नहीं लगता है तो आप सभी को बेंगलुरु की महिला मजदूरों का शुक्रगुजार होना चाहिए। उनका ही गुस्सा था कि सरकार दोबारा हिम्मत नहीं कर पाई। ईपीएफओ के पैसे पर टैक्स लगाने की। इसका उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि कई बार सरकार के फैसले
को समझने में वक्त लग जाता है। इस बीच सरकार का ही पक्ष हर जगह छपता है कि सब तो सही है। उसका फैसला लोगों की भलाई के लिए ही है। लेकिन होता कुछ और है। जैसे नोटबंदी के समय आपको याद होगा Twitter पर जिस तरह से लोग सवाल पूछ रहे हैं और ईपीएफओ की तरफ से जिस तरह से जवाब दिया जा रहा है। उसी को देखते हुए 2016 की घटना याद आ गई क्योंकि इस बार चर्चा Twitter पर है। अच्छी बात है। लोग पूछ रहे हैं और ईपीएफओ की तरफ से जवाब भी दिया जा रहा है। सवाल और जवाब को पढ़ते हुए लगा कि लोग सरकार पर इस मामले में भरोसा नहीं करते कि
वह लंबे समय तक सामाजिक सुरक्षा देने की चिंता कर रही है और यह सब कर रही है। इसीलिए जरा सी छेड़छाड़ होने पर लोग बेचैन हो गए हैं। सरकार का पक्ष अगर सही भी है तो उसे समझने में समय लगेगा। 13 अक्टूबर को श्रम मंत्रालय के तहत आने वाले ईपीएफओ की बैठक हुई। श्रम मंत्री डॉक्टर मंसुख मंडाविया की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में ऐसे कई फैसले लिए गए जिनका सीधा असर आप पर पड़ने वाला है। इसके अनुसार मिनिमम सर्विस पीरियड यानी न्यूनतम सेवा अवधि को घटाकर 12 महीने कर दिया गया है। पहले अलग-अलग जरूरतों के लिए सेवा अवधि अलग-अलग
थी। जैसे घर बनाने से जुड़े खर्च के लिए 5 साल का सर्विस पीरियड होता था। शादी के लिए 7 साल, सेहत के लिए कोई सर्विस पीरियड नहीं था। मगर अब इन सब को एक साल कर दिया गया है। ईपीएफओ ने पुरानी 13 श्रेणियों को खत्म कर केवल तीन कैटेगरी में आंशिक निकासी के नियम बनाए हैं। बीमारी, शिक्षा, शादी, मकान से जुड़े खर्चे और विशेष परिस्थितियों में सदस्य अपने पीएफ खाते में मौजूद पूरी राशि निकाल सकेंगे। इसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों का हिस्सा शामिल होगा। पहले शिक्षा और शादी के लिए केवल तीन बार निकासी की अनुमति थी। लेकिन
अब शिक्षा के लिए 10 बार और शादी के लिए पांच बार निकासी की जा सकती है। अब इसे लेकर बहस छिड़ गई है कि अगर आपकी नौकरी चली जाती है तो आप 12 महीने तक अपने खाते से पूरी राशि नहीं निकाल सकते। पूरी राशि निकालने के लिए 1 साल तक इंतजार करना होगा। मौजूदा नियम के तहत 2 महीने में सारी राशि निकाली जा सकती है। लेकिन अब इसमें बदलाव कर दिया गया है। नए नियम के तहत नौकरी छोड़ने के बाद के पहले साल आप 75% राशि ही निकाल सकते। 25% खाते में रखनी होगी। ईपीएफओ का जो हिस्सा पेंशन फंड का होता है उससे आप नौकरी छोड़ने के 3 साल
बाद ही निकाल सकते हैं। जबकि पुराने नियम के अनुसार आप 2 महीने में निकाल सकते थे। इसके अलावा सदस्यों के खाते में हमेशा 25% राशि मिनिमम बैलेंस के तौर पर रहेगी। भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय पीआईबी के प्रेस नोट में लिखा है इससे सदस्यों को 8 2 5% की ब्याज दर और चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंड इंटरेस्ट का फायदा मिलता रहेगा। जिससे रिटायरमेंट के लिए अच्छा खासा फंड तैयार हो जाएगा। सरकार का दावा है कि इससे लोगों को फायदा होगा। लेकिन ईपीएफओ में बदलाव के नए फैसले से हड़कंप मचा हुआ है। लोगों को लगता है नए नियमों
से ईपीएफओ के पैसे से लोगों का अधिकार चला गया है। तब सेफ्टी नेट के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा। निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग जानते हैं। नौकरी को लेकर अनिश्चितता बढ़ जाती है। टैक्स से लेकर फाइनेंस की कंपनियों में हजारों की संख्या में दनादन नौकरियां जा रही हैं। सरकार कुछ भी दावा कर ले लेकिन जो बाजार में नौकरी ढूंढ रहा है और Lindin पर कई-कई 100 एप्लीकेशन भेज रहा है, वह जानता है कि बाजार में नौकरी मिलनी कितनी मुश्किल हो गई है। लोग लिख रहे हैं कि उन्होंने बचत इसलिए की ताकि बुरे दिनों में काम आए। अब
अगर नौकरी जाने के बाद पूरे पैसे नहीं निकाल पाएंगे तो उन्हें कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या अपने ही बचत खाते का इस्तेमाल करना लग्जरी हो गया है? जो कर्मचारी का अधिकार होना चाहिए। क्या उसे विशेषाधिकार में बदल दिया गया है? लोगों का कहना है ईपीएफओ में हुए बदलाव से उनका अपने पैसे के ऊपर से कंट्रोल चला जाएगा। नौकरी छीन जाने के बाद भी अगर वे अपने पैसे को अपने अनुसार खर्च नहीं कर सकेंगे तो फिर बेरोजगारी के उन महीनों में क्या करेंगे जब आमदनी का कोई और स्रोत नहीं रहेगा। अगर जरूरतवश किसी को
अपने खाते से सारे पैसे निकालने हैं तो क्या उसे 1 साल तक बेरोजगार रहना होगा? नौकरी चली जाए तो ईएमआई का पैसा चुकाने के लिए आप अपने 1/4 पैसे को हाथ नहीं लगा सकेंगे। पेंशन फंड पर 3 साल का पहरा लगाने का क्या तर्क हो सकता है? लोगों ने यह भी पूछा है यह उनकी मेहनत की कमाई की खुली लूट है। किसी ने लिखा है पहले जबरदस्ती ईपीएफओ के तहत पैसा सेव करवाया जाता है और नए नियम के हिसाब से जब असल में पैसे की जरूरत होगी तो आपके पैसे को लॉक कर दिया जाएगा। अगर आप ऐसे संस्थान में काम करते हैं जहां 20 से अधिक कर्मचारी होते हैं और
आपकी बेसिक सैलरी डीए मिलाकर 15000 या उससे कम है तो आपको ईपीएफ में रजिस्टर होना पड़ता है। 7 करोड़ लोग ईपीएफओ में शामिल हैं। 7 करोड़ पता चलता है संगठित क्षेत्र में कमाई का क्या हाल है। इसमें जमा राशि पर टैक्स नहीं लगता और जमा पैसा पेंशन के काम आता है। पेंशन की राशि बहुत कम होती है। इसलिए लोग रिटायर होने या बच्चों की शादी और पढ़ाई के वक्त पैसा निकालते हैं क्योंकि इस पर टैक्स नहीं लगता। उनके हाथ में ज्यादा पैसा आता है। इंटरेस्ट भी ज्यादा होता है। जब अरुण जेटली ने कंपनी के हिस्से को 58 साल के बाद निकालने का नियम बनाया था। तब भी यही
दलील दे रहे थे। लोग अपनी बचत नहीं करते। खर्च कर देते हैं। इसलिए रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ नहीं बचता। इसलिए ऐसा किया जा रहा है ताकि कुछ पैसा उनके अकाउंट में रहे। एंटायर कॉर्पस विल बी टैक्स फ्री इफ इन्वेस्टेड इन एनुटी। इस बार भी कुछ ऐसी दलील दी जा रही है कि पेंशन फंड में 25% राशि को इसलिए रखा जा रहा है क्योंकि लोग सावधानी से सेविंग नहीं करते। पैसा उड़ा देते हैं। इसलिए सरकार लोगों की सुरक्षा के लिए ये प्रावधान लेकर आई है। मगर क्या ये तर्कसंगत है? इस तर्क से तो ऑनलाइन गेमिंग बहुत पहले बैन हो जानी चाहिए थी। इस तर्क
से आप लोगों को लोन भी कम दीजिए, कम लेने दीजिए। उन पर ईएमआई का बोझ आएगा ही नहीं। किसकी कितनी आय है यही देखकर फोन खरीदने दीजिए। पर्याप्त सेविंग नहीं है तो घर मत लेने दीजिए। और अगर लोगों की पेंशन की इतनी चिंता है। तो एक काम कीजिए। पूर्व उपराष्ट्रपति को आप तीन-तीन पेंशन क्यों दे रहे हैं? इसका जवाब दीजिए। उपराष्ट्रपति के पद पर रहने के कारण जगदीप धनकड़ को दो लाख की पेंशन मिल रही है। यह सांसद भी रहे तो सांसदी की पेंशन मिलेगी। विधायक भी रहे तो विधायकी की पेंशन मिलेगी। करीब ₹5 लाख हर माह इन्हें पेंशन मिलेगी। आम जनता से सरकार कहती है उसे बचत
की आदत नहीं। इसलिए जबरदस्ती पैसा रखना होगा ताकि पेंशन मिले। लेकिन यहां जगदीप धनकड़ के केस में लग रहा है। इन्हें पेंशन मिले। इसलिए तीन-तीन पेंशन जबरदस्ती दी जा रही है। लीजिए कोई इस अन्याय को कैसे सही ठहरा सकता है? वह भी नहीं जो पद पर रहते हुए राष्ट्रवाद की बातें किया करते थे। लेकिन जैसे ही तीन-तीन पेंशन मिली लपक कर झपट लिए। नियम है तो नियमों का विरोध भी तो कर सकते थे। जगदीप धनकड़ को तीन-तीन पेंशन मिल रही है। पौने लाख महीने की पेंशन। क्या आप जानते हैं कि ईपीएफओ से कितनी पेंशन मिलती है? ईपीएस 95 के तहत
आधे से अधिक लोगों को 1 महीने की पेंशन ₹1500 से कम मिलती है। 49 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें ₹1500 से कम की राशि मासिक पेंशन के रूप में दी जाती है। 6000 से अधिक पेंशन सिर्फ 0.65% लोगों को मिल रही है। जाहिर है लोग ईपीएफओ का महत्व पेंशन के लिए कम देखते हैं। टैक्स फ्री पैसे के लिए ज्यादा ब्याज दरों के लिए ज्यादा देखते हैं। 1500 की पेंशन में क्या होगा? कोई बता सकता है? अगर सरकार लोगों की चिंता कर रही होती तो इसे बढ़ा देती। बिहार में महिलाओं के खाते में ₹10,000 डाल दिए गए। टैक्स देने वाले कर्मचारियों की पेंशन भी तो बढ़ा सकते थे।
वोट के लिए बेरोजगार युवाओं को ₹1000 महीना दे रहे हैं। और जो 58 साल काम करता है उसकी पेंशन 1500 एक दलील यह दी जा रही है। नौकरी जाने के बाद 36 महीने तक निकासी पर रोक इसलिए है ताकि आपको पेंशन अकाउंट से बीमा का कवर मिलता रहे। पेंशन 1500 की वो दलील नहीं टिक पा रही तो अब बीमा का सहारा लिया जा रहा है। यह भी तय करने का अधिकार कर्मचारी को मिलना चाहिए। अगर उसके पास पहले से बीमा है जिसका प्रीमियम भर रहा है। हो सकता है नौकरी जाने के बाद उसी प्रीमियम को भरने के लिए ईपीएफओ के पैसे की जरूरत पड़ जाए। तब क्यों नहीं उसे
तुरंत निकालने की छूट मिलनी चाहिए। साफ है 25% पेंशन फंड को 58 साल तक के लिए रोकने की दलील में बहुत दम नजर नहीं आता। या इतनी बड़ी राशि नहीं जिसके लिए सरकार लोगों को मजबूर कर सके कि आपके सम्मान के लिए हम कर रहे हैं। लोग पेंशन के लिए कम, टैक्स छूट और ब्याज दर के लिए ईपीएफओ में पैसे रखते हैं। यही आकर्षण का मुख्य कारण है। क्या ₹1500 मासिक पेंशन से किसी की आत्मसम्मान की रक्षा हो सकती है? लोग इन बातों से संतुष्ट नहीं हो पा रहे। कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर, डीएम के सांसद कणमोई, एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन
ओवैसी समेत अन्य नेताओं ने भी इसका विरोध किया है। तृणमूल सांसद साकेत गोखले ने एक्स पर लिखा है जब पहले नौकरी जाने के 2 महीने बाद पैसे निकाले जा सकते थे तो इसे 1 साल क्यों किया गया? साकेत लिखते हैं अपना पैसा निकालने के लिए साल भर बेरोजगार रहना होगा वरना नहीं निकलेगा। पेंशन का हिस्सा 36 महीने बाद निकाल सकेंगे। पहले 2 महीने में निकाल सकते थे। 25% हिस्सा आप 58 साल तक निकाल नहीं सकते। साकेत गोखले ने लिखा है कि यह चोरी है। मोदी सरकार को लग रहा होगा कि बेरोजगारी बढ़ने वाली है। नौकरियां जाने वाली है। कहीं ऐसा ना हो
जाए कि फंड की कमी पड़ जाए इसलिए लॉक इन पीरियड बढ़ा दिया जाए। इन सुधारों को तुरंत वापस लेना चाहिए। साकेत कहते हैं। साकेत के ट्वीट पर पीआईबी की ओर से लंबा फैक्ट चेक आया है। पीआईबी ने लिखा है बेरोजगारी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी दर 6% थी जो 2023-24 में घटकर 3.2% पर आ गई। अब इन्हीं बातों से संदेह हो रहा है कि यह सब क्यों किया जा रहा है। सबको पता है हर सेक्टर में नौकरियां जा रही हैं। 1 साल पुराना आंकड़ा देकर जिसमें बेरोजगारी घटी हुई है। इस फैसले का बचाव
क्यों किया जा रहा है? आज ही तो खबर छपी है कि बेरोजगारी की दर अगस्त महीने में बढ़ गई। इसी अगस्त के महीने में 15 से 29 साल के लोगों में बेरोजगारी की दर 5.1% थी जो सितंबर में बढ़कर 5.2% हो गई। गांव में बेरोजगारी 4.3% से बढ़कर 4.6% हो गई है। यहां तो बेरोजगारी बढ़ रही है और आप आंकड़ा एक साल पहले का दे रहे हैं। इस हिसाब से साकेत गोखले की बात सही लगती है कि सरकार को लग रहा होगा कि नौकरियां जाने वाली हैं। लोग ईपीएफओ से पैसे निकालेंगे तो एक आंकड़ा वहां से भी मिलने लग जाएगा कि कितने लोगों ने पैसे निकाले।
यानी इतने लोगों की नौकरियां चली गई। सरकार को भले फंड की दिक्कत ना हो लेकिन इन आंकड़ों से उसे राजनीतिक तौर पर परेशानी हो सकती है। कहा जा रहा है लोग जल्दी-जल्दी पैसा निकाल लेते हैं। जाहिर है लोग लंदन घूमने के लिए ईपीएफओ से पैसा नहीं निकालेंगे। नौकरी गई है पैसे नहीं होंगे तभी ईपीएफओ से निकालेंगे। उन्हें पता है इसमें सबसे ज्यादा ब्याज मिलता है। इसलिए लोग कह रहे हैं कि जो तरह-तरह का लॉक इन पीरियड है वह ठीक नहीं। ईपीएफओ का तर्क है 75% पैसा तो नौकरी जाने के बाद आप निकाल ही रहे हैं। लेकिन बात यहां एक साल
की है जो पहले 2 महीने बाद निकाल सकते थे। ईपीएफओ के पक्ष में दलील दी जा रही है। पहले ज्यादा कैटेगरी होने के कारण क्लेम रद्द हो जाते थे। अब तीन की कैटेगरी में पैसे निकालने के विकल्प हैं। इसलिए क्लेम रद्द होने के चांस कम हो जाएंगे। बिजनेस पत्रकार ईरा दुग्गल ने लिखा है कि ईपीएफओ की प्रक्रियाओं में सुधार की जरूरत तो है लेकिन यह वह सुधार नहीं जिसकी उम्मीद थी। ईपीएफओ का पैसा जनता का पैसा है। सरकार ब्याज देती है। लेकिन कर्मचारी ईपीएफओ फंड के रूप में सरकार को पैसे देते हैं। जिसका इस्तेमाल वो अपने काम में करती है। बाजार
में निवेश करती है। वहां से ज्यादा पैसे कमाती है। हम नहीं जानते ईपीएफओ के स्टॉक की मौजूदा स्थिति क्या है? उनका निवेश किस में है? मगर क्या इन सवालों पर बात नहीं होनी चाहिए? ईपीएफओ के नियमों में किए गए बदलावों को लेकर जब सवाल उठने लगे तो पीआईबी ने फैक्ट चेक करना शुरू कर दिया। ईपीएफओ की तरफ से बताया जा रहा है क्या तथ्य है? क्या मिथ्या है? तब भी लोगों के सवालों से लग रहा है वे आसानी से संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं। जैसे लोगों का सवाल था क्या पूरे साल तक हम पैसा नहीं निकाल पाएंगे? तो जवाब आया आप नौकरी से निकाले
जाने के बाद 75% पैसा निकाल सकते हैं और साल पूरा होने पर भी बेरोजगार हैं तो पूरा पैसा निकाल सकते हैं। इसके बाद भी लोग सवाल पूछ रहे हैं। अगर किसी को 1 साल तक काम नहीं मिलता तो उसे उसका पैसा क्यों नहीं मिलना चाहिए? लोग बता रहे हैं अगर आपकी नौकरी चली जाए। बैंक के खाते में पैसे कम होते-होते मिनिमम बैलेंस पर आ जाए तब आप क्या करेंगे? ईपीएफओ खाते में बचत का 1/4 हिस्सा एक साल के लिए लॉक पड़ा रहेगा। आप साल पूरा होने का इंतजार करेंगे। इस चार्ट को देखिए। मिथ में लिखा है। लोग सोच रहे हैं नौकरी छोड़ने के 2 महीने बाद पेंशन फंड से पैसा निकाल सकते
हैं। मगर तथ्य यह फाइनल पेंशन निकासी के लिए वेटिंग पीरियड 3 साल तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इससे सदस्य अपनी पेंशन पात्रता, पारिवारिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित कर पाएंगे। ईपीएफओ ने बकायदा चार्ट बनाकर दिखाया है। यह मिथ है कि ईपीएफओ आपके पैसे को लॉक कर लेगा और आपको सामाजिक सुरक्षा से जुड़े लाभ नहीं मिलेंगे। तथ्य वाले खाने में ईपीएफओ ने लिखा है कि नए नियमों से पीएफ को आसानी से एक्सेस किया जा सकता है और सदस्यों की दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा पूरी की जा सकेगी। पहले कई सदस्य जल्दबाजी में निकासी
के कारण पेंशन की पात्रता खो देते थे। अब पेंशन के अधिकार और परिवार को मिलने वाले लाभ को सुरक्षित कर दिया गया है। ईपीएफओ को अभी और मेहनत करनी होगी कर्मचारियों को संतुष्ट करने में। उसकी तरफ से जितना जवाब आता है, लोग अपने सवालों के साथ तैयार मिलते हैं। यह इस संस्थान के लिए भी अच्छा है। बहुत दिनों के बाद यह संस्थान जनता के बीच बहस का कारण बना है। लेकिन पेंशन की बहस केवल ईपीएफओ तक सीमित नहीं होनी चाहिए। सभी भारतवासियों को जगदीप धनखड़ की तरह तीन-तीन पेंशन मिलनी चाहिए। इसका सपना हमें और आपको देखना चाहिए। आप अपने आसपास
पता कीजिए। ज्यादातर लोग बिना पेंशन की नौकरी इन दिनों कर रहे हैं। उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं। उनका आज ही नहीं कल भी नहीं संभल रहा। 58 साल बाद 1500 की पेंशन की बात उनसे क्यों की जा रही है। इस तरह से बताया जा रहा है जैसे
मामला 1500 का नहीं 15,000 का हो। नमस्कार, मैं रवीश कुमार।

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