नमस्कार दोस्तों, 24 मई सन 1987 कनाडा में 23 साल का एक आदमी केने पार्क्स आधी रात को अपने सोफे पर सो रहा था। यह हॉर्स रेसिंग में अपने सारे पैसे हार चुका था। पूरी तरीके से कर्ज में डूबा हुआ था और अपनी नौकरी भी खो चुका था। कुछ ही घंटे पहले यह टीवी पर सैटरडे नाइट लाइफ देखकर सोया था। अगले दिन इसका प्लान था कि सुबह उठकर अपने इनलॉस के घर जाएगा उनसे पैसों की मदद मांगने के लिए। लेकिन सुबह होने से पहले ही रात के करीब 1:30 बजे अचानक से यह अपने सोफे से उठकर गाड़ी में बैठ जाता है। [संगीत] बीच रात में ही यह हाईवे पर करीब 22
कि.मी. ड्राइव करके अपने इनलॉस के घर पहुंच जाता है। इसके पास घर की एक चाबी भी थी जिससे गेट खोलकर सीधा अंदर घुस गया। यहां यह अपनी मदर इन लॉ की हत्या कर देता है और फादर इन लॉ को सीवियरली इंजर कर देता है। इतना ही नहीं फिर यह खून में सना और कंफ्यूज स्टेट में पुलिस स्टेशन पहुंच जाता है और सीधा जाकर पुलिस को कहता है कि मैंने अभी दो लोगों को मार दिया है। इसके हाथों पर बहुत गहरे घाव थे। लेकिन इसे कोई दर्द नहीं हो रहा था। एंबुलेंस से हॉस्पिटल जाते वक्त इसने अपना मर्डर वेपन चाकू कहां रखा था यह भी बता दिया। लेकिन सबसे अजीब चीज इस कहानी में यह है कि कैनथ पार्क्स के पास अपने इनलॉज़ को मारने की कोई वजह नहीं थी। ट्रायल के दौरान इसके वकीलों ने जो कहा वो सुनकर सब शॉक्ड रह गए। उनका कहना था कि कैनेथ पार्क्स ने यह क्राइम सोते-सोते किया है। वो होश में नहीं था। इसलिए उसे कोई सजा नहीं मिलनी चाहिए। क्योंकि कैनथ पार्क्स यहां स्लीप वॉक कर रहा था। क्या कैनेथ पार्क सही में स्लीप वॉक कर रहा था? क्या किसी के लिए नींद में सोते-सोते यह सब करना पॉसिबल भी है? अगर कोई स्लीप वॉकिंग करते हुए ऐसा करता है तो वो उसके लिए रिस्पांसिबल माना जाता है या नहीं? और सबसे बड़ा सवाल दोस्तों आखिर कुछ लोग नींद में ऐसे बिहेव कैसे करते हैं? क्या है इसके पीछे की साइंस? आइए समझते हैं स्लीप वॉकिंग की मिस्ट्री आज के इस वीडियो में। वीडियो शुरू करने से पहले बताना चाहूंगा ध्रुव राठी एकडमी पर दिवाली धमाका सेल चल रही है मेरे सारे कोर्सेज पर फ्लैट 50% ऑफ यानी कि मेरा टाइम मैनेजमेंट कोर्स जहां पर आप प्रोडक्टिविटी और हैप्पीनेस को मैक्सिमाइज करना सीखेंगे या फिर मेरा YouTube ब्लूप्रिंट कोर्स जो आपको एक कंटेंट क्रिएटर बनना सिखाता है। कैसे आप YouTube को एक पार्ट टाइम जॉब या फुल टाइम करियर बना सकते हो। या फिर मेरा 10:30 घंटे का हाइली डिटेल्ड मास्टर एआई चैटबॉट्स कोर्स जो आपको चैट जीपीटी, जेमिनाई डीप सीक जैसे एआई टूल्स की थ्योरी, प्रैक्टिकल सब कुछ सिखाता है। इन सब में से आप कोई भी कोर्स खरीदो 2 अक्टूबर तक आपको फ्लैट 50% ऑफ मिलेगा। पूरे साल का बेस्ट डिस्काउंट और इतना ही नहीं। मेरे एi प्लेटफार्म AI PST पर भी 41% ऑफ मिलेगा आपको इस सेल में। अगर आप उसके एनुअल सब्सक्रिप्शन को खरीदोगे तो। जरूर जाकर चेक आउट करना। इन सबका लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन 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सोते हुए इंसान को जगाना काफी मुश्किल होता है और अगर जगा भी दिया जाए तो वो इंसान कंफ्यूजन और डिसओरिएंटेड फील करने लगता है। फिर एनरेम की तीनों स्टेजेस के बाद इंसान रेम स्लीप में एंटर करता है और सपने इसी स्टेज में आते हैं। इस स्टेज में हमारा हार्ट रेट बढ़ने लगता है और ब्रेन रिलेटिवली ज्यादा एक्टिव हो जाता है। हमारा दिमाग मेमोरीज को कंसोलिडेट करने के लिए और इमोशंस को प्रोसेस करने के लिए काम करने लगता है। यही कारण है सपने आने के पीछे। वैसे सपने आना अपने आप में ही एक बहुत डिटेल्ड और अलग टॉपिक है। उसकी चर्चा किसी और वीडियो में करेंगे। लेकिन स्लीप वॉकिंग की बात की जाए तो स्लीप वॉकिंग रेम स्टेज में नहीं होती। स्लीप वॉकिंग होती है सबसे गहरी नींद एनरम की स्टेज थ्री में। एक इंसान जो अपनी नींद में चलने लगे हो सकता है उसकी आंखें खुली हों और वो अपने आसपास के इवेंट्स को लेकर रिएक्ट कर रहा हो। इसे देखकर कुछ लोगों को लग सकता है कि यह तो जागा हुआ है। यह कॉन्शियस है। लेकिन असलियत में उसके सारे सेंसरी परसेप्शनंस लगभग बंद होते हैं। यानी कि उसकी आंखें खुली होंगी लेकिन वो चीजों को देख नहीं पाएगा, सूंघ नहीं पाएगा, सुन नहीं पाएगा। अपनी हैबिट के चलते और हल्कीफुल्की ठोकर खाकर वो रास्ते में रखी चीजों से बचकर निकल जरूर सकता है लेकिन रियलिटी में वह कुछ सोच समझ नहीं रहा होता। वैसे आमतौर पर देखा जाए तो स्लीप वॉकर्स की आंखें ऊपर और अंदर की तरफ मुड़ी रहती हैं और उनके चेहरे पर एक ब्लैंक एक्सप्रेशन रहता है। और सबसे इंपॉर्टेंट बात यह है कि स्लीप वॉकिंग के दौरान हुई घटना जागने के बाद याद नहीं रहती। अगर किसी इंसान को स्लीप वॉकिंग के दौरान जगा दिया जाए तो वो कुछ समय तक कंफ्यूज्ड और डिसओरिएंटेड रहता है। वही चीज जो तब होती है जब आप किसी को एनरेम की स्टेज थ्री स्लीप में जगा देते हो। अब इंसानों का क्या है कि हम लोग स्लीप साइकिल्स में सोते हैं। एक स्लीप साइकिल में यह चारों स्लीप स्टेजेस एक के बाद एक आती रहती है। n1, n2, n3, रेम स्लीप और उसके बाद फिर से एन1 आ गई। एक स्लीप साइकिल 90 मिनट से लेकर 110 मिनट के बीच तक चलती है। जब आप सोने जाते हो तो फर्स्ट हाफ ऑफ द नाइट में एन3 का जो हिस्सा है वो एक स्लीप साइकिल में रिलेटिवली ज्यादा बड़ा होता है और जैसे-जैसे सुबह करीब आती है रम स्लीप साइकिल का हिस्सा बढ़ता रहता है। सुबह उठने के लिए जागने के लिए सबसे कंफर्टेबल रहता है जब आप एन वन के हिस्से में उठो तो। एन वन के हिस्से में अगर आपकी नींद खुलेगी तो आप काफी फ्रेश और एनर्जेटिक फील करोगे। लेकिन अगर आप N3 के हिस्से में जागते हो तो आप काफी सोता-सोता और ड्राउजी फील करोगे। इसी कारण से आपने अक्सर सोशल मीडिया पर एडवाइस देखा होगा कि अगर आप रात को सोते हो तो या तो 7 1/2 घंटे सो या 9 घंटे सो क्योंकि ये स्लीप साइकिल के एंड का टाइम होगा मोस्ट प्रोबेब्ली। क्योंकि यह कहते वक्त अस्यूम किया जा रहा है कि डेढ़-डेढ़ घंटे की स्लीप साइकिल चल रही है। लेकिन असलियत में ये चीज पर्सन टू पर्सन डिपेंड करती है कि आपकी स्लीप साइकिल एक्सजेक्टली कितनी लंबी है। आपको खुद देखना पड़ेगा कि कितने घंटे सोने के बाद आप फ्रेश फील करते हो। उसी से ही आप अंदाजा लगा सकते हो कि आप एन वन स्लीप में उठते हो या किसी और स्टेज ऑफ स्लीप में उठते हो। स्लीप वॉकिंग पर वापस आए तो स्लीप वॉकिंग के एपिसोड्स कुछ मिनट से लेकर कई घंटे तक के हो सकते हैं। फ्रीक्वेंसी भी अलग-अलग रहती है। किसी को महीने में एक बार एपिसोड हो जाता है तो किसी को एक हफ्ते में कई बार। सबसे कमाल की चीज तो यहां पर यह है कि कुछ लोग स्लीप वॉकिंग करते-करते क्या-क्या कर लेते हैं। जैसे कि ब्रिटिश ऑस्ट्रेलियन आर्टिस्ट ली हैडविन का एग्जांपल देखिए। यह भाई साहब स्लीप वॉकिंग करते-करते पेंटिंग कर सकते हैं। मजाक नहीं कर रहा ये एक सच्ची कहानी है। यह जब 15 साल के थे तभी इन्होंने सोते-सोते स्लीप वॉकिंग करते हुए फेमस हॉलीवुड एक्ट्रेसेस की तीन पेंटिंग्स बना दी। और सबसे अजीब बात यह है कि ये होश में रहते-रहते पेंटिंग नहीं कर पाते। सिर्फ नींद में ही पेंट कर सकते हैं। इज एक्सप्रेसिंग दिस बाय क्रिएटिंग आर्ट वर्क। इट्स जस्ट अ रियली नाइस मैनिफेस्टेशन ऑफ मोर इमोशनल सिस्टम इज डूइंग व्हेन इट्स नॉट इनबिटेड बाय दी फ्रंटल एरियाज इसी तरीके से स्कॉटलैंड में एक केस देखा गया रॉबर्ट वुड का जो रात में उठकर खाना बनाने लगते हैं। यह नींद में रहते-रहते ही ऑमलेट से लेकर पास्ता जैसी डिशेस को तैयार कर देते हैं जिसके कारण इन्हें स्लीप वॉकिंग शेफ कहा जाता है। कुछ फेमस इंडियन एग्जांपल्स की बात करें तो क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भी अपने करियर की शुरुआत में स्लीप वॉकिंग की आदत थी। सौरव गांगुली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 1990 में जब वो इंग्लैंड में रूममेट्स थे, तब सचिन रात के 1:30 बजे उठकर पहले कमरे में एमलेसली घूमते फिर चेयर पर बैठ जाते। रूममेट था दोनों इंग्लैंड में। तो एक दिन रात को देखा कि ये बंदा ना चल रहा है रूम में। घूम-घूम के घूम-घूम के चेयर पे बैठता है। जब गांगुली ने सचिन से पूछा कि वो ऐसा क्यों करते हैं? तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें नींद में चलने की आदत है। तो मैंने उसको अगले दिन कहा यार तू तो डरा रहा है मुझे। तू कर क्या रहा है रात को? हां। नहीं, नहीं, मैं रात को चलता हूं नींद में। तो, उसको यह आदत थी रात को नींद में चलना। लेकिन, अनफॉर्चूनेट चीज़ यह है दोस्तों, कि स्लीप वॉकिंग में हर कोई इतना क्रिएटिव या कोई इतनी हार्मलेस एक्टिविटी नहीं करता। कई बार लोग वायलेंट हो जाते हैं और क्राइम्स कर देते हैं। जैसा कि कनाडा में केनेथ पार्क्स का केस था। इसके बारे में बात मैं आगे वीडियो में करता हूं। लेकिन पहले जानते हैं कि यह स्लीप वॉकिंग होती ही क्यों है? इंडिया में स्लीप वॉकिंग को लेकर कई सारी अफवाहएं फैली हुई है। कोई इन्हें भूत प्रेत से जोड़कर देखता है तो कोई कहता है कि यह पास्ट लाइफ की मेमोरीज हैं। [संगीत] लेकिन असलियत यही है दोस्तों कि इसका किसी भूत प्रेत, पास्ट लाइफ, स्पिरिट्स किसी से कोई संबंध नहीं है। स्लीप वॉकिंग एक प्योरली न्यूरोलॉजिकल फिनोमिना है। यह होता है ब्रेन की इनकंप्लीट अवेकनिंग से। यानी कि इंसानी ब्रेन का कुछ हिस्सा सोया हुआ रहता है और कुछ हिस्सा जाग जाता है। अब ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे एग्जैक्ट रीजनिंग इतनी क्लियर नहीं है। लेकिन लेटेस्ट साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक जब शरीर गहरी नींद में जाने की तैयारी कर रहा होता है। जब N3 स्लीप स्टेज में जाने की तैयारी हो रही होती है। तभी कुछ ऐसा हो जाता है कि ये ट्रांजिशन अच्छे से नहीं हो पाता। गहरी नींद और जागने के प्रोसेससेस ओवरलैप कर जाते हैं। क्योंकि जब कोई स्लीप वॉक करता है तो उसके दिमाग का वह हिस्सा जो मूवमेंट कंट्रोल कर रहा है वह जाग जाता है लेकिन कॉन्शियसनेस वाला हिस्सा सोया रहता है। इसी रीजन से मोटर एक्टिविटीज करनी पॉसिबल है स्लीप वॉकिंग करते हुए। लोग चल सकते हैं, बैठ सकते हैं, खड़े हो सकते हैं और यहां तक कि कुछ लोग तो गाड़ियां ड्राइव कर सकते हैं, खाना बना सकते हैं और पेंट भी कर सकते हैं। यह इसलिए पॉसिबल है क्योंकि दिमाग के हायर न्यूरल स्ट्रक्चर्स के इन्वॉल्वमेंट के बिना भी ब्रेन स्टेम और सेरेबलम जैसे पार्ट्स कॉम्प्लेक्स इमोशनल और मोटर बिहेवियर्स को कंट्रोल कर सकते हैं। हमारे शरीर का ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम आपने स्कूल में पढ़ा होगा। हमारी कॉन्शियस विल के बिना, हमारी मर्जी के बिना सांस लेता रहता है। हार्ट रेट और डाइजेशन जैसे फिजियोलॉजिकल फंक्शनंस को कंट्रोल करता रहता है। हमारी बॉडी को इन सभी कामों को करने के लिए सोचने की जरूरत नहीं होती। इसी ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम की दो ब्रांचेस होती हैं। एक सिंपैथेटिक ब्रांच जो फाइट और फ्लाइट रिस्पांस देखती है। यानी किसी खतरे के समय रिस्पांससेस को कंट्रोल करती है और दूसरी पैरासिंैथेटिक ब्रांच जो रेस्ट एंड डाइजेस्ट रिस्पांससेस को कंट्रोल करती है। स्लीप वॉकर्स में इस ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम को लेकर 2021 में एक बड़ी इंटरेस्टिंग डिस्कवरी हुई। इस रिसर्च ने यह पाया कि स्लीप वॉकर्स में N3 स्लीप के दौरान सिंपैथेटिक ब्रांच में कम एक्टिविटी होती है और पैरासिंैथेटिक ब्रांच एलिवेटेड रहती है। यानी कि रेस्ट और डाइजेस्ट रिस्पांसेस ज्यादा एक्टिवेट हो जाते हैं और फाइट और फ्लाइट रिस्पांसेस काफी कम हो जाते हैं। यह एक बड़ी हैरान कर देने वाली डिस्कवरी थी क्योंकि इससे पहले तक माना जाता था कि स्लीप वॉकर्स के डीप स्लीप में रेस्ट एंड डाइजेस्ट रिस्पॉन्ससेस कम और फाइट और फ्लाइट रिस्पांससेस ज्यादा होंगे और इसी कारण से वो स्लीप वॉक कर रहे होंगे। लेकिन लेटेस्ट रिसर्च से इसका एग्जैक्ट ऑपोजिट सामने आया। [संगीत] कुछ और रीसेंट स्टडीज के मुताबिक ओल्डर एडल्ट्स में स्लीप वॉकिंग, डिमेंशिया या पार्किंस डिजीज जैसी न्यूरो डिजनरेटिव डिजीजेस या कॉग्निटिव डिक्लाइन का संकेत हो सकता है। यहां पर एक और बड़ी कॉमन मिथ है कि जो लोग स्लीप वॉकिंग करते हैं, वो ज़ॉम्बीज़ की तरह अपने हाथ ऐसे आगे उठाकर चलते हैं। लेकिन असलियत में ऐसा है नहीं। इसके अलावा एक और मिसकंसेप्शन जो लोगों को होता है कि अगर स्लीप वॉकर्स को नींद से जगा दिया जाए तो उन्हें हार्ट अटैक आ सकता है या वो कोमा में जा सकते हैं। यह बात भी सच नहीं है लेकिन जैसा मैंने पहले बताया अच्छा यही रहता है कि उन्हें नींद से ना उठाया जाए क्योंकि वो कंफ्यूज्ड और बहुत ज्यादा डिसओरिएंटेड फील करेंगे। अब एक सवाल यहां पर यह भी है कि दुनिया में कितने परसेंट लोगों को स्लीप वॉकिंग का यह स्लीप डिसऑर्डर है। इस मेटा एनालिसिस के मुताबिक 6.9% लोग अपनी लाइफ में कभी ना कभी एक बार जरूर स्लीप वॉक करेंगे। बच्चों में स्लीप वॉकिंग सबसे ज्यादा कॉमन है। स्लीप वॉकिंग के एपिसोड 7 से 15 साल के मेल्स में सबसे ज्यादा देखे जाते हैं। लेकिन फॉर्चूनेटली ज्यादातर केसेस में यह बड़े होने पर बंद भी हो जाते हैं। बच्चों में जब स्लीप वॉकिंग होती है तो ये बच्चे स्लीप वॉकिंग करते समय जनरली ज्यादा शांत या सुस्त नजर आते हैं। लेकिन एडल्ट्स में स्लीप वॉकर्स बड़ी क्विक मूवमेंट्स करते हैं। जैसे कि वो किसी जल्दी में हो। वो बड़ी जल्दी-जल्दी में कहीं पर चलने लगते हैं या कहीं पर बैठ जाते हैं। कई बारी बड़ी ही अजीबोगरीब मूवमेंट्स देखने को मिलती है जो कुछ लोगों को डरावनी भी लग सकती है। एक्जेक्टली बच्चों और एडल्ट्स में इतना डिफरेंस क्यों देखने को मिलता है इसका कारण अभी हमें पता नहीं है। साइंटिस्ट इसका रीजन अभी भी ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। अब आपको स्लीप वॉकिंग होगी या नहीं, इसके पीछे जेनेटिक्स एक बहुत बड़ा रोल प्ले करता है। जामा पीडिएट्रिक्स में पब्लिश्ड एक स्टडी के मुताबिक जिन बच्चों के एक पेरेंट की स्लीप वॉकिंग की हिस्ट्री होती है उनके स्लीप वॉकिंग के 47.4% चांसेस होते हैं। लेकिन अगर दोनों पेरेंट्स की स्लीप वॉकिंग की हिस्ट्री है तो बच्चों में चांसेस बढ़कर 61.5% हो जाते हैं। जबकि ऐसे बच्चे जिनके किसी भी पेरेंट में स्लीप वॉकिंग नहीं देखी गई है उनमें स्लीप वॉकिंग के चांसेस केवल 22.5% रहते हैं। रिसर्चर्स ने क्रोमोसोम 20q12 -13.12 के एक जेनेटिक लोकस को आइडेंटिफाई किया है जिसका स्लीप वॉकिंग डिसऑर्डर को पेरेंट्स से बच्चों में इन्हेरिट करने में एक रोल हो सकता है। लेकिन जेनेटिक्स के अलावा कई और ऐसी चीजें हैं जो ससेप्टेबल लोगों में स्लीप वॉकिंग के एपिसोड्स ट्रिगर कर सकती है। जैसे कि पहला और सबसे बड़ा कारण है स्लीप डेप्रिवेशन। नींद की कमी। शरीर को सही तरीके से जागने के लिए सफिशिएंट स्लो वेव स्लीप चाहिए होती है। लेकिन जब नींद ढंग से पूरी नहीं होती तो किसी इंसान के पार्शियल अवेकनिंग और स्लीप वॉकिंग के चांसेस बढ़ जाते हैं। दिमाग अपनी नींद को पूरा करने के लिए लंबे समय तक डीप स्लीप में अटका रहता है और अगली स्टेज में स्मूथ ट्रांजिशन नहीं हो पाता। दूसरा स्ट्रेस के कारण भी स्लीप वॉकिंग के एपिसोड्स हो सकते हैं। तीसरा ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया एक और इंपॉर्टेंट फैक्टर है। यह एक ब्रीथिंग डिसऑर्डर है जिसमें सोते समय शॉर्ट पीरियड के लिए ब्रीथिंग रुक सकती है। अगर किसी को सीवियर ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया है तो उसके स्लीप वॉकिंग के चांसेस और बढ़ जाते हैं। चौथा सेडिटिव्स, एंटी डिप्रेसेंट्स और एंटीसाइकोटिक्स जैसी मेडिकेशंस जो अक्सर हार्ट डिजीजेस और ए्जायटी को ट्रीट करने के लिए दी जाती हैं। यह भी स्लीप वॉकिंग का रिस्क बढ़ा देती हैं। दूसरी तरफ बच्चों में देखा जाए तो फीवर आना या कोई बीमारी होना इसके कॉमन ट्रिगर्स हो सकते हैं। अस्थमा से पीड़ित बच्चों में स्लीप वॉकिंग के ज्यादा केसेस देखने को मिलते हैं। अस्थमा की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती जिससे बच्चों में स्लीप वॉकिंग ट्रिगर हो जाती है। लेकिन अब दोस्तों अपनी वीडियो की पहली कहानी पर वापस आए तो सवाल यह है कि क्या स्लीप वॉक करते हुए वो इंसान अगर क्राइम कर दे तो क्या उसे गुनहगार माना जाएगा? यह पूरी चीज एक बहुत बड़ी लीगल माइंड फील्ड है। क्योंकि क्रिमिनल लॉ में दो चीजें इंपॉर्टेंट होती हैं। एक जो क्राइम किया गया है और दूसरा इंटेंट यानी कि गिल्टी माइंड। किसी क्राइम के लिए कॉन्विक्ट किए जाने के लिए किसी व्यक्ति का केवल क्राइम करना जरूरी नहीं होता बल्कि इंटेंट साबित भी करना होता है कि उस इंसान ने यह क्यों करना चाहा? आखिर क्या कारण था यह क्राइम करने के पीछे? और स्लीप वॉकर्स के केस में बॉडी तो क्राइम कर रही है लेकिन उनका दिमाग इसमें इनवॉल्व नहीं होता। मतलब क्राइम हुआ है लेकिन इंटेंट नहीं है। केनेथ पार्क्स के केस में भी उसके वकीलों ने यही आर्गुमेंट कोर्ट में प्रेजेंट किया कि क्राइम के लिए केनेथ को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसने अपनी मर्जी से यह नहीं किया है। उसकी बॉडी ने क्राइम जरूर किया है लेकिन उसका दिमाग दोषी नहीं है। यह चीज मेडिकल एक्सपर्ट्स ने भी टेस्टिफाई करी कि क्राइम के समय केनेथ स्लीप वॉक कर रहा था और इसी कारण से जूरी ने पार्क्स को एक्विट कर दिया। उसे दोषी नहीं ठहराया गया। यह केस पूरी दुनिया में स्लीप वॉकिंग डिफेंस के लिए एक लैंडमार्क केस बन गया। लेकिन इंपॉर्टेंट चीज यहां यह भी है बतानी दोस्तों कि स्लीप वॉकिंग का डिफेंस हर बार सक्सेसफुल नहीं होता। क्योंकि ऐसे तो कोई भी व्यक्ति स्लीप वॉकिंग की हिस्ट्री दिखाकर क्राइम करके कभी भी बच जाएगा। ऐसे केसेस में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जज और जूरी को स्लीप वॉकर की कहानियों पर कितना यकीन होता है। आमतौर पर कोर्ट्स स्लीप वॉकिंग के डिफेंस को लेकर बड़े स्केप्टिकल रहते हैं। क्योंकि वो जानते हैं काफी सारे क्रिमिनल्स इस बहाने का इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे अपने आप को बचाने के लिए। एक जज ने तो एक बार इसे क्वागमा ऑफ लॉ कानून का दलदल तक कह दिया था। इसी कारण से स्लीप वॉकिंग का डिफेंस कोर्ट्स में काफी ज्यादा कंट्रोवर्शियल रहा है। सन 1997 में अमेरिका में स्कॉट फेलेटर नाम के एक आदमी ने घर पर अपनी पत्नी की हत्या कर दी। 44 अपने डिफेंस में उसने कहा कि वो स्लीप वॉकिंग कर रहा था। द डिफेंस ट्राइड टू से दिस वाले एक्टिंगली दिस वास मॉन्स। दो एक्सपर्ट्स ने इसे टेस्टिफाई भी किया कि स्कॉट स्लीप वॉक कर रहा था। ओपिनियन ही वाली इट्स स्टंग बिलीफ वासिन लेकिन कोर्ट में सारी आर्गुममेंट सुनने के बाद जरी को उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ। मर्डर वेपन एक हंटिंग स्टाइल चाकू था। उसकी गाड़ी के स्पेयर टायर स्टोरेज एरिया में मिला। इस बात से माना गया कि उसने अपने मर्डर वेपन को छुपाने की कोशिश की थी। स्कॉट ने इस इंसिडेंट के बाद अपने कपड़े उतार कर एक प्लास्टिक बैग में भी रखे थे और इन्हें छिपा कर पजामा भी पहन लिया था। [संगीत] उसके पड़ोसी ग्रेग ने कोर्ट को यह भी बताया था कि उसने अपनी पत्नी को पूल में डूबाने से पहले ग्लव्स पहने हुए थे। टेस्टिफाई दैट ही सीट ऑन ग्लव्स एस ही अप्रोचेस बॉडी। इसके अलावा इस पूरी कहानी में यह भी देखा गया कि एक स्लीप वॉकर के लिए केवल एक एपिसोड में इतना सब कुछ कर पाना बहुत ही अनयूजुअल होता है। उसके एक्शनंस काफी लंबे और काफी पर्पसफुल थे। जिसके कारण जरी ने नहीं माना कि वो स्लीप वॉक कर रहा था और उसे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। रिमाइंडर नेचुरल लाइफ इन द डिपार्टमेंट करेक्शन। इंडिया की लीगल हिस्ट्री में स्लीप वॉकिंग का सबसे पुराना और इंपॉर्टेंट केस है पपाती अमालका। यह एक यंग मदर थी जिन्होंने कुछ दिन पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था। लेकिन 28 अक्टूबर साल 1957 की रात को यह अपने बच्चे के साथ एक कुएं में कूद गई। इन्हें खुद तो बचा लिया गया लेकिन इनके बच्चे की डूबकर मौत हो गई। पुलिस ने पपाथी पर मर्डर का चार्ज लगाया लेकिन उसके वकीलों ने कहा कि इसे नींद में चलने की आदत थी और वह नींद में ही बच्चे को लेकर कुएं में कूद गई थी। तो क्योंकि उसे नहीं पता था कि वह क्या कर रही है इसलिए उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन जब सेशंस कोर्ट के सामने इस आर्गुमेंट को प्रेजेंट किया गया तो कोर्ट ने इसे रिजेक्ट कर दिया और पपाथी को उमर कैद की सजा सुना दी। कोर्ट ने कहा कि स्लीप वॉकिंग को इंडियन पीनल कोर्ट के सेक्शन 84 के तहत अनसाउंडनेस ऑफ माइंड नहीं माना जाता। रिस्पांस में पपाथी के वकीलों ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की जिसने इनके कन्विक्शन को तो ओवरटर्न नहीं किया क्योंकि इस केस में कोई एक्सपर्ट एग्जामिनेशन नहीं हुआ था लेकिन उसमें एक रेवोल्यूशनरी डिसीजन जरूर सामने आया। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि अगर साबित हो जाए कि कोई व्यक्ति सच में स्लीप वॉकिंग कर रहा है तो यह सेक्शन 84 के तहत अनसाउंडनेस ऑफ माइंड माना जाएगा। यह दोस्तों इंडिया की लीगल हिस्ट्री में एक लैंडमार्क केस बन गया क्योंकि इसके बाद यह एस्टैब्लिश हो गया कि स्लीप वॉकिंग एक वैलिड लीगल डिफेंस हो सकता है। लेकिन यहां पर भी बात वही है कि सब कुछ इसी चीज पर डिपेंड करता है कि जज आपकी बात पर कितना यकीन करता है। अब दूसरों को चोट पहुंचाना तो एक चीज हुई लेकिन इसके अलावा दोस्तों स्लीप वॉकर्स खुद को भी चोट पहुंचा सकते हैं। स्लीप वॉक करते हुए अक्सर लोग दीवारों से टकरा जाते हैं। किसी फर्नीचर या किसी बड़े ऑब्जेक्ट से टकराकर उन्हें काफी भारी चोट आ सकती है। सबसे बड़ा खतरा होता है सीढ़ियों से या बालकनी से नीचे गिरने का एस्पेशली अगर सेफ्टी ग्रिल्स ना लगी हों। जून 2024 को ऐसा ही एक केस मुंबई में हुआ। एक हाई राइज बिल्डिंग के सिक्स्थ फ्लोर पर रहने वाला 19 साल का लड़का मुस्तफा इब्राहिम चूनावाला स्लीप वॉक करते हुए बालकनी में पहुंच गया। इस बालकनी पर कोई सेफ्टी ग्रिल नहीं लगी थी और इसीलिए इसकी नीचे गिरकर मौत हो गई। इसके बाद सबसे बड़ा खतरा होता है जब लोग स्लीप वॉकिंग के दौरान घर से बाहर निकल कर ट्रैफिक में चले जाते हैं या ड्राइव करना शुरू कर देते हैं। महिलाओं के लिए चीज और भी खतरनाक बन जाती है। अगर आप किसी को जानते हैं जो स्लीप वॉक करते हुए रात को घर से अक्सर बाहर निकल जाते हैं तो इस चीज को बिल्कुल भी लाइटली नहीं लेना चाहिए। एनवायरमेंट को सिक्योर करना सबसे जरूरी चीज है। कोई भी शार्प या डेंजरस ऑब्जेक्ट नहीं होना चाहिए। आसानी से रीचेबल। सीढ़ियों पर सेफ्टी गेट्स लगे होने चाहिए और बालकनीज पर सेफ्टी ग्रिल्स होनी चाहिए। खिड़कियों और दरवाजों को ना सिर्फ लॉक करना है बल्कि उन पर चाइल्ड प्रूफ लैचेस भी लगाने हैं ताकि उन्हें खोलना और मुश्किल हो जाए। वैसे बेस्ट चीज तो यही है कि जो लोग स्लीप वॉकिंग करते हैं वो ग्राउंड फ्लोर पर ही सोने की कोशिश करें। अलर्ट्स के लिए डोर अलार्म्स या मोशन सेंसर्स का इस्तेमाल करें और दवाइयों और बाकी डेंजरस चीजों को किसी सेफ जगह पर लॉक करके रखे